Saturday, September 21, 2013

One of my favorites-

जीवन कभी सूना न हो
कुछ मैं कहूँ, कुछ तुम कहो।

तुमने मुझे अपना लिया
यह तो बड़ा अच्छा किया
जिस सत्य से मैं दूर था
वह पास तुमने ला दिया

अब ज़िन्दगी की धार में
कुछ मैं बहूँ, कुछ तुम बहो।

जिसका हृदय सुन्दर नहीं
मेरे लिए पत्थर वही।
मुझको नई गति चाहिए
जैसे मिले वैसे सही।

मेरी प्रगति की साँस में
कुछ मैं रहूँ कुछ तुम रहो।

मुझको बड़ा सा काम दो
चाहे न कुछ आराम दो

लेकिन जहाँ थककर गिरूँ
मुझको वहीं तुम थाम लो।
गिरते हुए इन्सान को
कुछ मैं गहूँ कुछ तुम गहो।


संसार मेरा मीत है
सौंदर्य मेरा गीत है

मैंने कभी समझा नहीं
क्या हार है क्या जीत है
दुख-सुख मुझे जो भी मिले
कुछ मैं सहूँ कुछ तुम सहो।

--रचनाकार: रमानाथ अवस्थी

--प्रस्तुति: शारदा सुमन

Wednesday, September 11, 2013

ज़िन्दगी चले विशवास पर,
किसी के प्यार के आहार पर,
उसके होने के इकरार पर,
मन की कुशलता के संहार पर,
ज़िन्दगी चले विशवास पर, ज़िन्दगी चले विशवास पर!

कामना करो चाहे हज़ार,
हो जाओ कही भी जाके फरार,
एक पल का सभी को है इन्तेज़ार,
पाले थोडा सा वो दुनिया का प्यार।

हासिल करने से सब कुछ है मिलता,
बंजर ज़मीन पर कभी फूल नहीं खिलता,
कोशिश की आशा से क्या नहीं होता,
ढलता सूरज उसी गगन में फिर से हैं उगता ।