Friday, October 28, 2016

तुज़से क्या मैं खुशी मांगू, तू खुद ही एक खुशी हैं,
मेरे प्यार की और उसकी अनोखी रुची है,
सावला सा तेरा ये ढंग, मस्त मलंगी बेख़ुबी है,
इज़हार ये करता हू, दिल की तू  गुनगुनी है|

जीने की मेरी चाहत,
तेरे साथ में है रूह की राहत,
मीठी सी वो तेरी गाल बात,
दिन बन जाता, पकड़कर तेरा हाथ|

रब से कुछ नही माँगता,
तेरे नैनो मेरा प्यार,
तेरे लफ़ज़ो मे इकरार,
और इस ज़िंदगी का उपहार|

हुए आजके कवि के समाचार!






2 comments:

  1. बड़े दिनों बाद मित्र कहाँ थे अब तक ?

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  2. भाई आशु,
    मंज़िल से भटक बैठा था,
    अब जाके प्राप्त हुई है :)

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