Thursday, August 4, 2011

बैठे बैठे लिख बैठे एक कविता..

इश्क की चांदनी में वो तुम्हारी नज़र,

दुनिया की कहा थी मुझे खबर,

दिल का जो हाल अब था इधर,

इस कदर मैं चाहता था - दिल का वही हाल हो उधर!



किसी से ये पागल दिल अब करता था प्यार,

ना जाने डरता था करने से इकरार,

हजारो कोशिशो के बाद भी नहीं हुआ तयार!

दिल फिर भी साला रहता बेक़रार!



अब इस कविता का क्या दालू आचार?

तुम लोग भी करदो इस की तारीफ सर्कार,

बस आप लोग की दोस्ती का प्यार,

चाहता हैं ये दिल हर बार!

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